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Kavita

‘ भाषाएं '   भाषायें जानती हैं ,  नहीं मिलेगा उन्हें अमरत्व नहीं पी पाई थीं समुद्र मंथन से निकला अमृत अहसास है आने वाले संकट का विलुप्त होने का अर्थ खोने का। अवसर भी है दबाब भी नये रुप धरने का पर ,  सहमी हुई हैं मतलब समझ रही है कि गज को ही चुरा ले गया कोई , युधिष्ठिर के कहे से। अश्वथामा के तले ही सत्य दब गया। कोई स्माइली कोई इमोटिकॉन चुपका कर शब्दों की सांस ही घोंट गया। बेजान नहीं हैं , वे बेचैन हैं संस्कृति ,  अध्यात्म ,  दर्शन , औषधि - शास्त्र या विज्ञान किन्हें सौंपे यक्ष प्रश्न बना हुआ है। कचोटता है प्रश्न उन्हें जब असुरक्षित महसूस करने लगती हैं , डर बना हुआ है भीतर   मालूम है उन्हें तकनीकों और पुरस्कारों की बैसाखियों पर या संस्थाओं के वेंटीलेटर से ली उधारी की सांसों पर बहुत दिन कुलांचें नहीं भर पायेंगी वे बहती हुई नदियां हैं स्रोत जल सोखेगा तो   तो सूख जायेंगी या स्वयं ही ले लेंगी समाधी हालाँकि फिर संस्कृतियाँ भी नहीं बच पायेंगी खो जायेंगे बहुत से विचार शब्दों के साथ स...